बिहार विधानसभा चुनाव 2020 कौन जीतेगा ? Bihar vidhansabha chunav BJP,JDU,RJD, Congress me se konsi party jeetegi? Exit polls

By | February 22, 2020

बिहार विधानसभा चुनाव 2020 कौन जीतेगा ? Bihar vidhansabha chunav BJP,JDU,RJD, Congress me se konsi party jeetegi? Exit polls

बीजेपी ने दिल्ली विधानसभा चुनाव में हिंदुत्व और राष्ट्रवाद के मुद्दे के जरिए ध्रुवीकरण का खुला खेला है और नीतीश कुमार की पार्टी साथ में चुनाव लड़ रही थी. अब बिहार में साल के आखिर में विधानसभा चुनाव होने हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि बिहार के सुशासन बाबू नीतीश कुमार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी क्या एक ही नाव पर सवारी करेंगे?

दिल्ली विधानसभा चुनाव के बाद अब बिहार में सियासी मुकाबला होना है. बिहार में इस साल के आखिर में विधानसभा चुनाव होने हैं. यही वजह है कि दिल्ली के चुनाव नतीजों पर जिन लोगों की सबसे गहरी नज़र रही होगी, उनमें बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का नाम मुख्य रूप से शामिल है. दिल्ली के सियासी दंगल में बीजेपी नेताओं ने हिंदुत्व और राष्ट्रवाद कार्ड के जरिए ध्रुवीकरण का खुला खेल खेला है. ऐसे में सवाल उठता है कि बिहार के सुशासन बाबू नीतीश कुमार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी क्या एक ही नाव पर सवारी करेंगे या फिर अपनी-अपनी ढपली और अपना-अपना राग होगा?

दिल्ली के नतीजे बिहार में डालेंगे असर ?

दिल्ली के विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार लंबे अरसे के बाद पहली बार बिहार के बाहर बीजेपी के साथ गठबंधन कर चुनावी मैदान में उतरे थे. जेडीयू का बेशक दिल्ली के चुनाव में कोई खास दांव नहीं था, वो दो ही सीट पर चुनाव लड़ रहे हैं. लेकिन जिस तरह से उन्होंने केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा के साथ चुनावी जनसभाएं की हैं. ऐसे में दिल्ली के चुनाव के नतीजे बिहार की राजनीति पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से असर डाल सकते हैं.

बिहार में दो दलों के नहीं, दो गठबंधन के बीच संग्राम –

बिहार विधानसभा चुनाव दो दलों के बजाय दो गठबंधनों के बीच होने की संभावना है. एनडीए में बीजेपी के अलावा जेडीयू और एलजेपी हैं और दूसरी ओर महागठबंध में आरजेडी, कांग्रेस, आरएलएसपी और कुछ अन्य छोटी पार्टियां होंगी. इसके अलावा जेएनयू के पूर्व छात्र संघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार इन दिनों बिहार में काफी सक्रिय हैं और सीएए के खिलाफ लगातार बड़ी-बड़ी जनसभाएं कर रहे हैं, ऐसे में वामपंथी दल भी मैदान में किस्मत अजमाने उतरेंगे.

नीतीश अब बीजेपी के एजेंडे पर हैं – 

नीतीश कुमार से बगावत कर जेडीयू का साथ छोड़ चुके पूर्व राज्यसभा सदस्य अली अनवर कहते हैं कि नीतीश कुमार ने लगभग ढाई दशक तक बीजेपी का पार्टनर रहते हुए अपनी छवि को सेकुलर बनाकर रखा था लेकिन हाल ही में जिस तरह से तीन तलाक, सीएए और अनुच्छेद 370 पर अपने स्टैंड बदले हैं, उससे साफ जाहिर है कि उन्होंने बीजेपी के सामने सरेंडर कर दिया है.

ऐसे में उनका असल चेहरा लोगों के सामने आ गया है और अब उनका सेकुलर मुखौटा उतर चुका है. नरेंद्र मोदी के साथ सवारी ही नहीं बल्कि उनकी राह पर चल रह हैं. हाल ही में पवन वर्मा और प्रशांत किशोर को पार्टी से बाहर कर नीतीश कुमार ने साफ कर दिया है कि उनकी सियासी राह बीजेपी के एजेंडे पर आगे बढ़ेगी.

दिल्ली में बीजेपी का हिंदुत्व एजेंडा फेल – 

दिल्ली विधानसभा चुनाव प्रचार में बीजेपी ने जिस तरह शाहीन बाग को लेकर आक्रमक रुख अख्तियार कर सियासी माहौल को बेहद गर्म दिया था. इसके अलावा अनुच्छेद 370, तीन तलाक, राम मंदिर, सीएए जैसे मुद्दे को बीजेपी ने अपने मुख्य एजेंडे के तौर पर रखा था.

बीजेपी नेता गोली मारो और विरोधियों की जीत पाकिस्तान की जीत होगी जैसी बातें चुनावी सभाओं में कही. बीजेपी का भले ही दिल्ली की सत्ता का 22 साल का वनवास न खत्म हुआ है लेकिन वो 3 सीटों से बढ़कर 8 पर पहुंच गई और अपने वोट फीसदी में भी 6 फीसदी की बढ़ोतरी की.

बिहार में भी बीजेपी का हिंदुत्वा एजेंडा- अली अनवर –

अली अनवर कहते हैं कि बिहार में बीजेपी ने पहले ही नीतीश कुमार के नेतृत्व में चुनाव लड़ने का ऐलान कर रखा है. नीतीश कुमार अपने काम और सुशासन के नाम पर तीन चुनाव जीत चुके हैं और अब उनके पास कुछ नया बताने के लिए नहीं है. वहीं, मौजूदा समय में केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के पास उपलब्धि के तौर पर धारा 370, नागरिकता संशोधन कानून और राम मंदिर जैसे मुद्दे हैं. इसके सिवा कोई विकास के काम नहीं है. इसीलिए बीजेपी नेता बिहार विधानसभा चुनाव में इसी एजेंडे को लेकर मैदान में होंगे.

नीतीश का चेहरा तो बीजेपी का संगठन – 

वही, वरिष्ठ पत्रकार अरविंद मोहन कहते हैं कि दिल्ली की तर्ज पर बिहार में भी सारे संशाधनों और प्रचार तंत्र के स्तर पर चुनाव लड़ा जाएगा लेकिन कन्टेंट अलग होगा. नीतीश कुमार के चेहरा होगा तो बीजेपी का संगठन होगा और नरेंद्र मोदी के कामों के बखान भी होंगे. जेडीयू बीजेपी के उग्र हिंदुत्व वाले बयान देने वाले नेताओं की वजह से असहज रहती थी, लेकिन अब ये नीतीश के लिए मायने नहीं रखता है.

उन्होंने कहा कि बिहार का चुनाव नीतीश कुमार के एजेंडे पर लड़ा जाएगा. पीएम मोदी भले ही हिंदुत्व की बात न करें, लेकिन उनके नेता जरूर करेंगे. 2015 के चुनाव में भी बीजेपी के कुछ नेताओं ने पाकिस्तान, गोहत्या और गाय की सुरक्षा को बड़ा मुद्दा बनाया था. ऐसे में इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि इस बार वो न करें.

नीतीश और बीजेपी दोनों की मजबूरी –

अरविंद मोहन कहते हैं कि पीएम मोदी और बीजेपी के लिए हिंदुत्व कोई मुद्दा नहीं बल्कि चुनाव जीतना ही अहम मुद्दा है. यही बात अब नीतीश कुमार पर ही लागू होती है कि उनको डेपलमेंट से अब कोई लेना देना नहीं रह गया है. बीजेपी बिहार में अपने बल पर राज नहीं कर सकती है तो नीतीश कुमार उनके लिए जरूरी हैं. वहीं, नीतीश कुमार अपने बल पर चुनाव नहीं जीत सकते हैं तो उनके लिए एक सहारे की जरूरत है.

वह कहते हैं कि नीतीश कुमार की अब वो सियासी हैसियत नहीं रह गई है कि वो संगठन और विचाराधार के स्तर पर सियासी लड़ाई लड़ें. बीजेपी और नीतीश के बीच दोस्ती एक अंधे और एक लंगड़े जैसी है, जो एक दूसरे के बिना किसी काम के नाम नहीं है. नीतीश शुरू से कभी जार्ज के मत्थे, तो कभी लालू के सहारे और तो कभी बीजेपी के कंधे पर सवार होकर सियासत करते रहे हैं. इसीलिए उन्हें किसी भी विचारधारा से कोई परहेज नहीं है

 

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